Thursday 14 April 2011

हरसिंगार



न जाने तुम मुझे....उस देव-सरीखे
हरसिंगार जैसे क्यूँ लगते हो ?
जो दिवा के आ जाने पर
बदल लेता है अपना रंग-रूप

अलग कर देता है
वो सारे स्मृति-चिन्ह
जो रात्रि से गले मिलने पर
खिल उठते हैं...उसके मन-आंगन में
एक-एक लम्स को
झाड़-बुहार कर अलग कर देता ह
वो अपने-आप से

कैसे भूल जाता है वो
उन स्वप्नीले स्पर्शों को,
उस अनछुए-से बंधन को,
जिसमें बांध कर पा लेता है
वो अपने-आप को.....
कितना निर्मोही होता है न वो
और कितना निष्ठुर भी...

पर येः बात
वो रात्रि क्यूँ नहीं समझ पाती ?
दिवा के बीतने पर
वो फिर आ जाती है
उस देव सरीखे हरसिंगार से मिलने
जो एक बार फिर
रात्रि को अपनी व्याकुलता दिखला कर
बांध लेगा अपने बाहु-पाश में-

और रात्रि फिर
ठगी-सी बंधती चली जाएगी
उसके मोह-पाश में....

न जाने तुम मुझे....उस देव-सरीखे
हरसिंगार जैसे क्यूँ लगते हो ?
जो दिवा के आ जाने पर,
बदल लेता है अपना रंग-रूप

गुंजन
15/4/2011

6 comments:

  1. i always thought dat pain is d curse for human bt now i feel dat it is d best thing dat can ever happen wid us coz i m watching u turning into a devine angle and adorable lady which u were meant to b always.u r amazing always bt now u r becoming a person who easily can make other people speechless wid her character. amazing character. god has blessed u my dear. so be fearless.

    ReplyDelete
  2. "एक एक शब्द अनमोल है, एक ऐसा चित्रण है जो हर किसी महिला के साथ होता है, आप धन्यबाद की पात्र हैं!
    " न जाने क्यूँ वो दर्द को सुनता तो है मगर,
    कहता है मुझे दर्द का एहसास नहीं होता है!"

    ReplyDelete
  3. संवेदना -
    नारी और प्रकृति ने जिसे हमेशा से अपनाया है
    फिर वो प्रकृति से अलग किस प्रकार हो सकती है... रात का दर्द और एक स्त्री की संवेदना का यथार्थ पर उकेरी दर्द की कलम और टीस की स्याही से लिखी रचना ..

    ReplyDelete
  4. सर्वप्रथम आपको ब्लॉग आरम्भ करने की बधाई | इतनी अच्छी कविता लिखने के लिए आप निश्चय ही प्रशंसा की पात्र हैं | आशा है आगे भी आपकी उत्कृष्ट कवितायें पढ़ने को मिलेंगी | आपके उत्कृष्ट काव्य भविष्य के लिए मेरी शुभकामना है | - रुपेश श्रीवास्तव

    ReplyDelete
  5. गुंजन आप लिखती भी हो ये जानकर बड़ी खुशी हुई..और इतने सुंदर ब्लॉग के लिये बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  6. इतनी निष्ठुरता के बाद भी वो देव सरीखा ! नही , वो देव नही आपने बना दिया है ! इश्वर खुद इश्वर नही बनता, हम बनाते है !

    ReplyDelete