Saturday 10 September 2011

फिर क्यूँ .......कृष्णा !!



तुम ....... तुम्हारे ख्याल
महकते रहते हैं
हरदम
मेरे आस-पास
तो बोलो भला
तुम्हारे ख्यालों में लिपटी
फिर क्यूँ न महकूँ
मैं भी .....

_________


पारिजात के पुष्पों
से ही झड़ रहे थे
मेरे ख्वाब बीती रात गए
फिर क्यूँ तुमने इन्हें
शब्दों में गूँथ लिया
फिर क्यूँ इक नया ख्वाब
मेरी बंद होती
पलकों पे सजा दिया
फिर क्यूँ ......?

गुन्जन
१०/९/११

13 comments:

  1. ख्वाब ही तो आगाज़ हैं
    शब्द परवाज़ हैं .... इनसे तुम हो ... प्रश्न कैसा ?

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  2. पारिजात के पुष्पों
    से ही झड़ रहे थे
    मेरे ख्वाब बीती रात गए
    फिर क्यूँ तुमने इन्हें
    शब्दों में गूँथ लिया
    फिर क्यूँ इक नया ख्वाब
    मेरी बंद होती
    पलकों पे सजा दिया
    फिर क्यूँ ......? क्या कहू? समझ में नही आ रहा है... निशब्द कर दिया आपने....

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  3. फिर क्यूँ इक नया ख्वाब
    मेरी बंद होती
    पलकों पे सजा दिया
    फिर क्यूँ ......?
    फिर क्यों..... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति......

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  4. कल 12/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. पारिजात के पुष्पों
    से ही झड़ रहे थे
    मेरे ख्वाब बीती रात गए
    फिर क्यूँ तुमने इन्हें
    शब्दों में गूँथ लिया
    फिर क्यूँ इक नया ख्वाब
    मेरी बंद होती
    पलकों पे सजा दिया
    फिर क्यूँ ......?....

    बहुत सुन्दर

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  6. सुन्दर रचनाएं....
    सादार...

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  7. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ...

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  8. ख्वाब सजाये हैं ...ज़रूरी है इन का सजना..जीने में सहायक होते हैं न

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  9. Gunjan jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
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