Tuesday 17 January 2012

प्यार तब तक पूरा नहीं होता .. जब तक मरने की जैसी ख्वाइश उसमें नहीं समाती



प्यार तब तक पूरा नहीं होता ..
जब तक मरने की जैसी ख्वाइश उसमें नहीं समाती
बस ऐसा ही करती हूँ .. मैं तुमसे प्यार

सब कहते हैं कि क्यूँ तुम हरदम मरने की बातें करती हो ?
तो मैं सोचती हूँ कि शायद उन सभी ने ..
कभी प्यार ही नहीं किया और अगर किया भी है
तो कम से कम मुझ जैसा तो नहीं .. हाँ मुझ जैसा नहीं
टूट कर चाहा है मैंने तुम को

जानते हो अब तक ना जाने कितनी बार मरी हूँ मैं .. तुमसे प्यार कर कर
पर हर बार ना जाने कौन सी चुम्बक मुझे खींच लाती है
उस धुंध से भरी मीठी-मीठी,
कुछ-कुछ तुम जैसी खुशबू वाली .. मौत की घाटी से
हाँ जब भी सोचती हूँ मैं मौत के बारे में तो ना जाने क्यूँ
सबसे पहला ख्याल तुम्हारा ही आता है .. याद आता है
तुम्हारा घर, तुम्हारी वो गली, जहाँ से हर बार गुज़रते हुए
पागलों की तरह तुम्हें ढूंढ़ते हुए, तुम्हारे घर क़ी दहलीज़ को
बस एक बार .. हाँ बस एक बार छूने क़ी ख्वाइश में ..
ना जाने कितनी बार मरती थी मैं.

याद है एक बार तुमने पूछा था कि तुम्हें मुझ में
ऐसा क्या अच्छा लगा जो तुम मुझसे प्यार करने लगीं ?
सो पहले-पहल तुम्हारा नाम ही सुना था मैंने
अलग .. एकदम अलग .. सबसे अलग
शायद प्यार ऐसे ही हो जाता है
सो सबसे पहले तुम्हारे नाम से ही प्यार हुआ था मुझे,
तब से लेकर आज तक ना जाने कितनी बार
तुम्हारे नाम को लिखा है मैंने .. जानते हो !

अब तो याद भी नहीं .. हजारों बार, लाखों बार या पता नहीं
हर जगह, जहाँ भी कुछ लिखने जैसा होता था मेरे पास
हाँ उनमें मेरी उँगलियाँ भी शामिल थीं
बस तुम्हारा नाम लिखती रहती थी मैं बेवजह, हर जगह
जैसे तुम्हारा नाम लिखने से .. तुम मिल जाओगे मुझे

बिना ज़ख्म, बिना खून के, एक बेतरतीब सा दर्द उठा करता था
लगता था .. की बस तुम आ जाओ
की बस तुम कहीं दिख भर जाओ

प्यार तो खुद ही में मरने के जैसा होता है ना .. ?

गुंजन .. १७/१/१२

Friday 13 January 2012

Reason



तुमसे प्यार करने का भी
कोई reason
हो सकता है क्या
प्यार तो बस
प्यार होता है ना
और उस पर तुमसे प्यार
हह्ह ..
किसी को भी हो जाये
तभी तो मरने के जितना करती हूँ
मैं तुमसे .. प्यार

सुनो !!
जब मरूंगी
तब तो आओगे ना
मुझसे मिलने
बिना किसी reason के
एक बार ..
बस एक आखिरी बार .. ?

गुंजन .. ११/१/१२

Tuesday 10 January 2012

सुन पगली .... कब्बी इश्क ना करना


सुन लड़की !!
तू इत्ते सारे रंग कहाँ से लाती है ?
कहीं चोरी तो नहीं करती ना ?
फूलों के रंग
सपनों के रंग
हवा के रंग
तितलियों के रंग
रोने के रंग
और इन सब से ऊपर
ये मुआ इश्क का रंग

ए लड़की !!
सच्ची बता
तुझे कहीं इश्क तो नहीं हो गया ?
इत्ते सारे रंग तो बस
इश्क होने पर ही खिला करते हैं

सुन पगली !!
कब्बी इश्क ना करना
ना .. कब्बी नहीं
वर्ना ये रंग तुझे कहीं का ना छोड़ेंगे
पागल तो तू पहले से ही है
अब क्या मरने का इरादा है .. ?

गुंजन .. १०/१/१२

सुनो कई दिन से मन है .. एक चरस वाली cigrattee पीने का



सुनो
कई दिन से मन है
एक चरस वाली cigrattee पीने का
एक गहरा सा
आदिम कश लगाने का
मुहँ से लेकर फेफर्ड़ों तक
और फिर आत्मा तक
धुआं-धुआं हो जाने का

एक स्वप्निल .. ज़हर बुझी
दुनिया में जाने का

स्स्स्स .....

इश्क के आसमान से
एक गहरी छलांग लगाने का
धरा को छू फिर
एक लम्बी उड़ान लेने का

वहाँ तक जाने का
जहाँ इश्क के फूल खिला करते हैं
वहाँ जहाँ फ़रिश्ते गले मिला करते हैं
मर जाने का ... हाँ
तुम्हारे इश्क में फ़ना हो जाने का

सुनो !!
कई दिन से मन है
तुम्हारे सीने पे सर रख कर
सो जाने का ....

गुंजन .. ९/१/१२

Sunday 8 January 2012

पर जैसा भी था मन का पक्का और सच्चा था .. और है भी


ये ५ और ६ जनवरी
रोज़ क्यूँ नहीं आती
सुना .. तुम रोज़ क्यूँ नहीं आतीं ?
रोज़ आओ तो शायद
वो भी आ जाये
अपनी धुआं उड़ाती हंसी के साथ
खुद भी ना जाने कहाँ डूबते-उतराते

ज़िन्दगी को हर्फों में जीना
और हवा में उड़ा देना
बस यही तरीका था उसका
और है भी ..

मुझे भी तो बस शब्दों में ही जिया
पढ़ता और तह करके रखता जाता
अपनी किताबों के डब्बे में
बिना कुछ लिखे
पगला था पर जैसा भी था
मन का पक्का और सच्चा था
और है भी ..

कभी-कभी सोचती हूँ
अगर कुछ लिख देता
तो शायद
शायद नहीं यक़ीनन
आज उसकी किताबों वाले डब्बे से
किताबें चुन उसके घर को
सजा रही होती
और सजा रही होती
दो सपने ..
उसकी और अपनी आँखों में भी

तभी तो
कुछ तारीखें
कुछ बातें
और कुछ शक्लें
भुलाये नहीं भूलतीं
और तुम भी नहीं
कभी नहीं

गुंजन .. ८/१/१२

Tuesday 3 January 2012

सुलगी सी एक कविता मेरे प्यार के जैसी .. १७ साला



पता नहीं क्यूँ
मन हो रहा है
इस वक़्त
एक सुलगी सी कविता लिखने का
कुछ - कुछ मुझ जैसी
मेरे प्यार के जैसी .. १७ साला
या एक coffee house में
एक ग्लास पानी के जैसी
जो मेरे होठों से लग कर
गुजरी थी .. तुमसे ही कहीं
पता नहीं क्यूँ
मन हो रहा है इस वक़्त
एक नीले रंग की साड़ी पहनने का
खारे पानी के जैसी .. नमकीन स्वाद वाली
जिसे पहने देख कभी तुम्हारा दिल करा था
मुझे गले लगाने का
तब शायद तुम्हारे गर्दन पर ठहरे
उस काले तिल को छू पाती मैं
अपनी सुलगी सांसों से तुम्हें .. ख़त्म कर पाती मैं
जिंदा रहने की ख्वाइश तुममें .. कहीं जगा पाती मैं

और खुद भी जी पाती
उम्र भर के लिए
बिना सुलगे ..
बिना बिखरे ..

गुंजन .. ३/१/१२