Saturday 11 February 2012

दो सखियों की बात ..



मह - मह महकने लगी
मैं तुम संग .. सखी
चह - चह चहकने लगी
मैं बन कर चिड़ी
कभी इत .. कभी उत
मैं इतराने लगी
ओ री सखी !!
मेरी प्यारी सखी !!


हाँ इक ख्वाब हूँ मैं
चाँद की कायनात हूँ मैं
इस जीवन की सबसे सुंदर
सौगात हूँ मैं
तेरे मन की
मेरे मन की
हर इक बात हूँ .. मैं

ओ री सखी !!
मेरी प्यारी सखी !!

गुंजन .. ८/२/१२

6 comments:

  1. गहरे भाव।
    बेहतरीन रचना।

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  2. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  3. वाह ........आज भी सखी का साथ प्यारा लागे

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  4. खूबसूरत कविता गुंजन जी बधाई और शुभकामनायें |

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  5. mah mah mahakne lagi....
    chah chah chahakni lagi..
    naye tarah ka shabd sanyojan..
    khubsurat rachna...

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    1. sundar rachna hai gunjab ji....accha laga aapko padhkar

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